राजकुमार सोनी जी की राष्ट्र भक्ति से ओत प्रोत रचना।

मेरी कलम से,,आपको पसंद आयेगी
नशे में झूम के, मंदिर को तू अपवित्र कहता ह
मस्जिद,चर्च,गुरुद्वारे,से तू डरता रहता है
जहां घर पे मां रहती है, वो स्थान नही देखा,
तेरे कर्मो ने उस चौखट का, अपमान नही देखा

घर भी तो एक मंदिर है,ये बात तू कब मानेगा
जिसने तुझको जन्म दीया, उसको कब पहचानेगा
(२)
मां की गोदी ममता गंगा, फिर क्यों तू कलंक बने
पिता की छाया है बरगद, फिर क्यों तू उसके संग छने
पत्नी ह लक्ष्मी का रूप, बेटी है साक्षात सरस्वती
भाई बहन के प्रेम को तू, केसे भुला यूं सती

घर भी तो एक मंदिर है, जहां देवता जीवित रहते
पर नशे में तू देख न पाए, जो सामने भी रहते
(३)
शराब की बोतल में झांके, भगवान वहां क्या पाएगा
तेरा ह्रदय जो गंदा है, उसमे प्रभु कब आएगा
कभी बैठ मां के चरणो में, तू चैन वहा भी पाएगा
वो थाली जिसमे मां ने परोसा, प्रसाद स्वयं बन जाय वहां

घर की रसोई काशी जैसी, मां तुझमें अन्नपूर्णा है
पर तुझको तो तिज़ोरी प्यारी, रिश्तों की ना ममता प्यारी
(४)
कभी बहन की राखी को तू, रक्षा_ सूत्र समझे तो
कभी तो बेटी की मुस्कान में, भगवान को पहचाने तो
पत्नी के संग रथ को तू, धर्म का संग दे तो
पिता की सेवा करके भी तू, तीर्थो का फल ले ले तो
“कहे राजकुमार हिन्दुस्तानी”
मंदिर जानें पहले, घर को मंदिर मान ले रै
तभी तेरा जीवन सच्चा, वरना सब कुछ व्यर्थ ठहरे रै

जय हिन्द जय भारत

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