
राजकुमार सोनी की कलम से,,,
आओ बच्चों तुम्हें सुनाए,,,काली राते हिन्दुस्तान की
जब सता ने सांसे छीनी,,, आजादी के अरमान की
ना न्याय बचा ना सच बोला,,, चुप थी सारी सरकारे
कैद हुआ था संविधान भी,,, बिन जंजीरे,, बिन दीवारे
“अंतरा 1”
इंद्रा ने जब हार सुनी,,, कोर्ट से जो फरमान आया
जनता बोली गद्दी छोटो,,,ताज तुम्हें ना भाया
रातों रात हुंकुम सुनाया,,,अब आपातकाल चलेगा
कुर्सी के लोभ में सारा,, संविधान भी रो गया
आओ बच्चों तुम्हें सुनाए,,,काली राते हिन्दुस्तान की,,,
“अंतरा 2”
खबरों पे ताला लगा,रेडियो भी चुप था
बोल नही सकते हम, हर अखबार भी गुम था
जो भी जनता सवाल करे, वो देश द्रोही ठहरे
न्याय कलम विचार सभी,,, सब सता से डरे
आओ बच्चों तुम्हें सुनाए,,,काली राते हिन्दुस्तान की
“अंतरा 3”
संजय बोले अब नसबंदी,,, शासन ने डर फैलाया
जो गरीब थे मारे गए,,, घर घर दुख का साया
शक्ती की बर्बर चालों से,,, मां की ममता रोई
भारत भू की गोदी में,,,पीड़ा बन के जोश संजोई
आओ बच्चों तुम्हे सुनाए,,,,काली राते हिन्दुस्तान की,,
“अंतरा 4”
जयप्रकाश ने बिगुल बजाया,,, अब जागो भारतवासी
संघ, जनसंघ,सत्याग्रह,,, तब पहुंचे हर नगरी,,,बस्ती
काले कपड़े पहन चले,,, जनता के वीर जवान
दिल्ली का सिंहासन छोड़ो,, जनता का था फरमान
हर महल में गूंज उठा, जनता का एलान हुआ
अब तानाशाही को झुकना,,, भारत का अरमान हुआ
आओ बच्चों तुम्हें सुनाए,,काली राते हिन्दुस्तान की
“अंतरा 5”
जनता ने जब मत डाला,,, तख्त हिला था दिल्ली का
जीती फिर से आजादी,,, संविधान ने स्वर खोला
इंद्रा की सता टूटी,,,जनवाणी फिर जागी
भारत मां की जय जय बोली,,, अब सच की थी आगाजी
“समापन”
आओ बच्चों याद रखो,,,काली राते वो भारी थी
जब तानाशाही तांडव में,,, अधिकारों की लाचारी थी
सीखा हमने लोकतंत्र,,, बलिदानों से चलता है
“कहे राजकुमार हिन्दुस्तानी”
जनता की जागृति से ही,,, संविधान फलता है
जय हिन्द जय भारत
